पनवेल, नवी मुंबई में आईआईजी का मुख्य परिसर
भा.भू.सं. की मूल गतिविधियां 175 वर्षों से भी अधिक अवधि का पुरातात्विक महत्व रखती हैं, जो भारतीय उपमहाद्वीप क्षेत्र में भूचुंबकत्व के ज्ञान का प्रचार-प्रसार करने में महत्वपूर्ण सिद्ध हुआ है। यह लंबी श्रृंखला के भूचुंबकीय डेटा का उपयोग करने हेतु एक डेटा संग्रहण संगठन से आगे बढ़ते हुए एक स्पष्ट और गूढ़ पद्धति से समाज को लाभ पहुंचाने वाले लागू पहलुओं से निपटने वाले संस्थान के रूप में विकसित हुआ है। भारतीय भूचुंबकत्व संस्थान (भा.भू.सं.) को 1971 में भूचुंबकीय और संबद्ध क्षेत्रों में अनुसंधान को आगे बढ़ाने के लिए एक पूर्ण-स्तरीय जनादेश दिया गया था। यह अपनी स्थापना के बाद से ही एक स्वायत्त संस्थान रहा है और अब विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार के अंतर्गत कार्यरत है। देश में भूचुंबकत्व के विकास को इस संस्थान के विकास के साथ अंतर-संबंधित रूप से जोड़ा गया है।
भूचुंबकत्व के कई सामाजिक अनुप्रयोग हैं और यह विज्ञान मानवता के सभी पहलुओं को किसी न किसी रूप में प्रभावित करता है। पृथ्वी पर जीवन के सभी रूपों का अस्तित्व इस भूचुंबकीय क्षेत्र के अस्तित्व से ही जुड़ा हुआ है। हम सभी जानते हैं कि यह घटक अंतरिक्षी प्राकृतिक प्रक्रियाओं में बड़ी ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। 19वीं शताब्दी में भारत में भूचुंबकत्व के क्षेत्र में अनुसंधान के लिए एक महत्वपूर्ण योगदान की शुरूआत हुर्इ। भारत और शेष दुनिया में लगभग समवर्ती रूप से भूचुंबकीय प्रेक्षणों की शुरुआत हुई। भारत में पहला चुंबकीय प्रेक्षण 1822 में मद्रास में शुरू किया गया था, इसके बाद शिमला (1841), त्रिवेंद्रम (1841) और कुलाबा (1841) में ये प्रेक्षण लिए गए। इनमें से, केवल कुलाबा वेधशाला 1841 से निर्बाध रूप से जारी रही। कुलाबा और अलीबाग वेधशालाओं के संयुक्त प्रेक्षण चुंबकीय क्षेत्र डेटा की सबसे लंबी श्रृंखला (लगभग 175 वर्ष) प्रदान करते हैं।
आईआईजी कोलाबा परिसर, मुंबई
भा.भू.सं. भूचुंबकत्व और भूभौतिकीय भूचुंबकत्व/भूभौतिकी, चुंबकमंडल, अंतरिक्ष और वायुमंडलीय विज्ञान जैसे आधारभूत क्षेत्रों में बुनियादी और अनुप्रयुक्त अनुसंधान करता है। भा.भू.सं. में कई सक्रिय अनुसंधान समूह शामिल हैं जो सैद्धांतिक, प्रायोगिक और प्रेक्षण कार्यों में व्यस्त हैं। संस्थान के पास भूचुंबकत्व और संबद्ध क्षेत्रों में प्रयुक्त उपकरणों के अभिकल्प और निर्माण के लिए एक आधुनिक प्रयोगशाला है। भूचुंबकत्व एक बहु-विषयी विज्ञान है और इस प्रकार भौतिकविदों, भूभौतिकीविदों और पृथ्वी वैज्ञानिकों के लिए अनुसंधान के अवसर प्रदान करता है। भूचुंबकत्व, अपनी अनूठी प्रकृति के कारण, एक वैश्विक विज्ञान भी है और इसमें अक्सर अन्य देशों के वैज्ञानिकों का सहयोग शामिल होता है। संस्थान भूचुंबकत्व हेतु एक विश्व आंकड़ा केंद्र (डब्ल्यू.डी.सी., मुंबई) का भी संचालन करता है, जो दक्षिण एशिया में भूचुंबकीय डेटा के लिए एकमात्र अंतर्राष्ट्रीय केंद्र है और विभिन्न विश्वविद्यालयों और अनुसंधान संस्थानों के अंतरिक्ष और पृथ्वी वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं की जरूरतें पूरी करता है।