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K S K G R L, PRAYAGRAJ

K S K G R L, ALLAHABAD
Hindi

डॉ. के.एस. कृष्णन जियोमैग्नेटिक रिसर्च लेबोरेटरी (केएसकेजीआरएल) प्रयागराज (यूपी)

डॉ. के.एस. कृष्णन भूचुंबकीय अनुसंधान प्रयोगशाला (केएसकेजीआरएल) प्रयागराज (उ.प्र.)

डॉ. के.एस. कृष्णन भूचुंबकीय अनुसंधान प्रयोगशाला (केएसके जीआरएल) प्रयागराज, भा.भू.सं. का एक क्षेत्रीय केंद्र है, जिसका उद्घाटन 27 मार्च 2008 को किया गया था। केएसके जीआरएल में नाम-पट्टिका का अनावरण भा.भू.सं. की शासी परिषद के अध्यक्ष और सदस्यों, डीएसटी वित्तीय सलाहकार, आरएसी सदस्यों और संस्थान के निदेशक की उपस्थिति में मुख्य अतिथि, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव डॉ. टी. रामासामी द्वारा किया गया था। निदेशक, भा.भू.सं., ने भूभौतिकी और निकट-पृथ्वी अंतरिक्ष मौसम अनुसंधान से संबंधित बहु-विषयी अध्ययनों के लिए प्रयोगों की विस्तृत श्रृंखला की स्थापना और विकास के लिए प्रयागराज में केएसके जीआरएल की स्थापना की आवश्यकता पर जोर दिया। केएसके जीआरएल की गतिविधियों में भूचुंबकीय अनुसंधान, उच्चतर वायुमंडलीय अध्ययन, पुराचुंबकीय और चुंबकीय-शैलविज्ञान अध्ययन के क्षेत्र शामिल हैं। इन अध्ययनों से यह अपेक्षित है कि वे पृथ्वी की आंतरिक संरचना के साथ-साथ उच्चतर वायुमंडल और सौर स्थलीय संबंधों के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करें। केएसके जीआरएल विषुवतीय आयनीकरण विसंगति के शीर्ष पर स्थित है, इसलिए यहां किए गए प्रेक्षण कम अक्षांश क्षेत्र में उच्चतर वायुमंडल के अध्ययन के लिए महत्वपूर्ण डेटा आधार प्रदान करते हैं। केएसके जीआरएल का भौगोलिक सह-निर्देशांक 25.47 oN, 81.90 oE है और यह लगभग 40 एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ है।

पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र मापन का निर्बाध अभिलेखन करना केएसके जीआरएल का मुख्य कार्य है। केएसके जीआरएल में एक डिजिटल फ्लक्सगेट चुंबकमापी प्रचालित किया गया है जो पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र के तीन घटकों - क्षैतिज (H), उदग्र (Z) और दिक्पात (D) के उच्च वियोजन डिजिटल डेटा अभिलेखित करता है। ये प्रेक्षण दिक्पात नति चुंबकमापी (DIM) और प्रोटॉन अग्रलेखन चुंबकमापी (PPM) के साथ किए गए निरपेक्ष क्षेत्र घटकों के नियमित प्रेक्षणों के पूरक हैं। एकत्र किया गया डेटा नवी मुंबई स्थित भा.भू.सं. मुख्यालय में अनुसंधान अनुप्रयोग के उपयोग हेतु भेजा जाता है।

केएसके जीआरएल, भा.भू.सं. में निम्नलिखित क्षेत्रों में वैज्ञानिक गतिविधियाँ संचालित की जाती हैं:

(क) उच्चतर वायुमंडलीय अध्ययन: विषुवतीय आयनीकरण विसंगति पर प्रयागराज के अनूठे स्थान के कारण, उच्चतर वायुमंडल/अंतरिक्ष मौसम अध्ययन के लिए केएसके जीआरएल में निम्नलिखित प्रयोग किए जा रहे हैं।

आयनमंडलीय अनुसंधान के लिए 1) आयनोसॉन्ड और VHF प्रस्फुरण रिसीवर:

नियमित रूप से आयनमंडलीय अन्वीक्षण और अनुसंधान के लिए आदर्श, लचीली, पूर्ण विशेषताओं वाला एक कनाडाई उन्नत डिजिटल आयनोसॉन्ड (CADI) इस केंद्र में लगातार प्रचालित किया जा रहा है। यह उदग्र ऊंचाई निर्धारित करने वाली एक रडार प्रणाली है, जिस पर आयनमंडल 2-20 मेगाहर्ट्ज की आवृत्ति रेंज में संकेतों को वापस पृथ्वी पर परावर्तित करता है और इसका उपयोग foE, foEs, foEbs h’F और foF2 जैसे आयनमंडलीय मापदंडों की गणना करने के लिए किया जाता है। इसके अलावा आयनमंडलीय प्रस्फुरण का एक व्यापक डेटाबेस और प्रस्फुरणों के प्रसंस्कृत सूचकांक उत्पन्न करने के लिए एक अंतरिक्ष-स्थित रिसीवर VHF प्रस्फुरण प्रयोग भी जारी है। प्रयागराज पर आयनमंडलीय अनियमितताएं उत्पन्न करने वाले प्रस्फुरण के आकृति-विज्ञान, प्रस्फुरण पर भूचुंबकीय प्रभावों और अनियमितता विवर्तन स्वरूप के आंचलिक और यादृच्छिक वेग का निर्धारण करने और उस पर अंतरिक्ष मौसम प्रभाव का अध्ययन भी किया जा रहा है।

2) अत्यधिक निम्न आवृत्ति (VLF) रिसीवर:

निम्न-अक्षांश के सतह आधारित VLF/व्हिस्लर तरंग प्रेक्षणों के उपयोग से आयनमंडल/चुंबकमंडल अध्ययन के लिए, VLF रिसीवर को केएसके जीआरएल में निरंतर रूप से प्रचालित किया जा रहा है, ताकि VLF तरंगों की प्राकृतिक और कृत्रिम स्रोतों में उत्पत्ति का अन्वीक्षण किया जा सके। यह स्टेशन नैनीताल और वाराणसी में दो अन्य भा.भू.सं. के VLF स्टेशनों के साथ मिलकर और दुनियाभर में फैले VLF स्टेशनों के नेटवर्क AWESOME (प्रभावों के प्रेक्षण एवं प्रतिरूपण् हेतु वायुमंडलीय मौसम की शैक्षिक प्रणाली) के सहयोग से काम करता है। VLF रिसीवर उत्तर/दक्षिण (N/S) और पूर्व/पश्चिम (E/W) दिशा और संकेत अनुरूपण इलेक्ट्रॉनिक्स में दो अनुप्रस्थ चुंबकीय लूप एंटेना का उपयोग करता है जो ~ 300 हर्ट्ज और 47 किलोहर्ट्ज़ के बीच एक समतल आवृत्ति प्रतिक्रिया प्रदान करते हैं। प्राप्त डेटा से 100 kHz पर नमूना लिया गया है और इसमें 10-माइक्रोसेकंड निरपेक्ष समय वियोजन है। अतीव निम्न आवृत्ति (ELF, 30-3000 Hz) और अत्यधिक निम्न आवृत्ति (VLF, 3-30 kHz) तरंग डेटा का विश्लेषण आयनमंडल और चुंबकमंडल में प्रक्रियाओं के दूर संवेदन के लिए एक शक्तिशाली उपकरण है, जो अंतरिक्ष मौसम के अध्ययन की अन्य तकनीकों को पूरकता प्रदान करता है। । इन तरंगों के निरंतर अन्वीक्षण से आयनमंडल और चुंबकमंडल में विद्युतचुम्बकीय घटना के संख्यात्मक भौतिक विश्लेषण में सहायता मिलती है जैसे: तड़ित उत्सर्जन (रेडियो वायुमंडलीय), व्हिस्लर, VLF उत्सर्जन, तड़ित-प्रेरित इलेक्ट्रॉन वर्षण (LEP), गामा-किरण स्फुटन, क्षणिक प्रकाशीय घटनाएं (TLE's), सौर ज्वाला एवं भूकंप पूर्वेक्षक अध्ययन।

3) वायुदीप्ति अनुसंधान:

रात्रदीप्ति उत्सर्जन (मुख्य रूप से OI 630 nm, OI 557.7 nm, OI 777.4 nm, NaD 589.3 nm, OH औसत बैंड और O2 वायुमंडलीय बैंड) को उच्च वियोजन वाले इमेजर के साथ-साथ कृष्णपक्ष की साफ रातों पर स्कैनिंग फोटोमीटर का उपयोग करके सतह से अन्वीक्षण किया जाता है। एकत्रित रात्रदीप्ति डेटा का उपयोग मध्यमंडल-निम्न तापमंडल-आयनमंडल क्षेत्र की गतिकी का अध्ययन करने के लिए किया जाता है। उच्चतर मध्यमंडल-निम्न तापमंडल क्षेत्र का वायुमंडलीय तापमान OH औसत बैंड और O2 वायुमंडलीय बैंड रात्रदीप्ति के प्रेक्षणों से प्राप्त किया जा रहा है। वायुदीप्ति वायुमंडलीय घटकों से फोटोन का उत्सर्जन है जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सौर विद्युतचुम्बकीय विकिरण द्वारा आवेशित होता है। रात के दौरान होने वाली इस घटना को रात्रदीप्ति कहा जाता है। रात्रदीप्ति उत्सर्जन मध्यमंडल-निम्न तापमंडल क्षेत्र और उच्चतर तापमंडल क्षेत्र की विशेषता है। ये उत्सर्जन मध्यमंडल-निम्न तापमंडल में उच्चतर प्रतिक्रियाशील रासायनिक समूहों (मुख्य रूप से विषम-ऑक्सीजन, Ox और विषम-हाइड्रोजन, HOx समूह) की उपस्थिति और उच्चतर तापमंडल में पुनर्संयोजन प्रक्रियाओं के कारण होते हैं।

4) ULF/ELF अध्ययन: 

संस्थान एक प्रमुख परियोजना “निम्न अक्षांशों पर ULF/ELF तरंगें” संचालित करता है जिसके तहत भारत के अक्षांशीय विस्तार को समाविष्ट करने वाली प्रेरण कॉइल चुंबकमापी की एक श्रृंखला स्थापित करने की योजना बनाई गई है। यह उपकरण फैराडे के विद्युतचुम्बकीय प्रेरण पर आधारित है और पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र का परिवर्तन मापता है। यंत्र में तीन संवेदक (कॉइल्स) होते हैं जो उत्तर-दक्षिण, पूर्व-पश्चिम और उदग्र दिशाओं में स्थापित होते हैं। ये कॉइल भूचुंबकीय क्षेत्र परिवर्तनों के तीन आयतीय घटकों को मापते हैं। तीनों संवेदकों का संकेत आउटपुट संचार इकाई (कैम-यूनिट) में लाया जाता है, जो संवेदक और कंप्यूटर के बीच का अंतराफलक है, जिसमें डेटा एकत्रित होता है। GPS -एन्टीना के उपयोग से समय समामेलन प्राप्त किया जाता है। इस प्रकार प्राप्त डेटा का उपयोग निम्न अक्षांशों पर भूचुंबकीय स्पंदनों की विशेषताओं की छानबीन में किया जा सकता है। 64 हर्ट्ज और इससे अधिक की नमूना दर पर एकत्र किए गए डेटा का उपयोग पृथ्वी-आयनमंडल गुहा में तड़ित जनित वैश्विक अनुनाद स्वरूपों के रूप में उत्पन्न शूमैन अनुनादों की विशेषताओं का अध्ययन करने के लिए भी किया जा सकता है। प्रयागराज भारतीय अक्षांश सीमा को समाविष्ट करने वाले स्टेशनों की प्रस्तावित श्रृंखला में से एक है।

5) सूक्ष्म-वायुदाबलेखी के उपयोग से क्षोभमंडल-आयनमंडल अनुक्रिया अध्ययन:

हम विषुवतीय अक्षांश स्टेशन तिरुनेलवेली में निम्न और उच्चतर वायुमंडल के बीच युग्मन का अध्ययन कर रहे हैं और प्रयागराज में इस घटना का अध्ययन करने की मंशा रखते हैं। निम्न वायुमंडलीय परिवर्तनशीलता का अध्ययन सूक्ष्म-वायुदाबलेखी और मौसम संबंधी मापदंडों जैसे कि तापमान, पवन परिवर्तन, वायु वेग आदि का उपयोग करके किया जा रहा है। उच्चतर वायुमंडलीय विविधताओं का अध्ययन आयनोसॉन्ड द्वारा किया जाता है। हम चक्रवात, तड़ित, चुंबकीय तूफान आदि सहित विभिन्न वायुमंडलीय स्थितियों में निम्न और उच्चतर वायुमंडलीय परिवर्तनों में बदलाव का अध्ययन करते हैं। वायुमंडलीय गुरुत्व तरंग को सूक्ष्म-वायुदाबलेखी की मदद से मापा जा रहा है। गुरुत्वाकर्षण तरंगों का आयाम विभिन्न वायुमंडलीय स्थितियों में भिन्न होता है और यह विभिन्न वायुमंडलीय प्रक्रियाओं की पहचान में उपयोगी होता है।

(ख) भूभौतिकी अध्ययन: केएसके जीआरएल में निम्नलिखित समूह भूभौतिकी अनुसंधान के लिए समर्पित हैं:

1) पुराचुंबकीय अध्ययन:

केएसके जीआरएल (भा.भू.सं.) के पुराचुंबकीय और शैलचुंबकीय समूह ने दक्खन घाटों और कैम्ब्रियन-पूर्व भित्तियों के धारवाड़, बस्तर और बुंदेलखंड क्रेटन्स में अंतर्वेधित खंडों पर पुराचुंबकीय, शैलचुंबकीय और चुंबकीय प्रभाव्यता  की निम्न चुंबकीय विषमदैशिकता (AMS) के क्षेत्रों में महत्वपूर्ण अनुसंधान में सक्रिय रहकर उल्लेखनीय योगदान दिया है, जो मैग्मा प्रवाह की गतिशीलता और उनके पुराचुंबकीय काल को परिभाषित करता है। संपूर्ण दक्खन ज्वालामुखी प्रांत को समाविष्ट करते हुए इस विस्तृत अध्ययन ने दक्खन ज्वालामुखी की आयु 65 Ma निर्धारित की है। समूह ने 2000 Ma से 2500 Ma तक की अवधि के लिए भारतीय उपमहाद्वीप के स्पष्ट ध्रुवीय विचलन पथ (APWP) को भी परिभाषित किया है। कैम्ब्रियन-पूर्व भित्तियों पर AMS अध्ययन के जरिए, मैग्मा प्रवाह दिशाओं को मैग्मा चेम्बरों का पता लगाने और भित्ति तंत्र को समझने के लिए निर्धारित किया गया है। हैदराबाद ग्रैनाइटी प्लूटन के NW-SE उन्मुख संरचनात्मक कणाकारों को AMS अध्ययन (आकृति 1) द्वारा सफलतापूर्वक पहचान लिया गया है। समूह ने भीमा बेसिन, दक्षिणी भारत के तलछट पर पुनर्विभाजन के एक अद्वितीय चिह्नक की भी पहचान की है। गोंडवाना बेसिन के अंतर्वेधन के लिए 120 Ma और 65 Ma में दो अलग-अलग मैग्मायुक्त घटनाओं की पहचान की गई थी। यह समूह प्रदूषण स्रोतों से अलग करने के लिए पुणे और प्रयागराज क्षेत्रों की चतुर्थक मृदा पर शैलचुंबकीय और पर्यावरणीय चुंबकीय अध्ययनों में भी सक्रिय है। समूह ने अरब सागर और बंगाल की खाड़ी के गहरे समुद्र के मुख्य तलछट पर पर्यावरणीय चुंबकीय अध्ययन किया है ताकि उसके उद्गम के साथ-साथ उसकी पुरा-जलवायु को भी समझा जा सके। उत्तर-पूर्व भारत के तेल संभावित क्षेत्रों की पहचान करने के लिए चुंबक-स्तरिकी छानबीन में भी समूह सक्रिय रहा है। संस्थान की परियोजनाओं के अलावा, डीएसटी और ओएनजीसी द्वारा वित्तपोषित कई शोध परियोजनाएं भी सफलतापूर्वक पूरी की गईं। वर्तमान में, अन्य शोध संस्थानों के साथ-साथ विश्वविद्यालयों के सहयोग से तीन डीएसटी वित्तपोषित परियोजनाएं जारी हैं। यह समूह विश्वविद्यालय के छात्रों को उनकी शोध डिग्री हासिल करने के लिए प्रशिक्षण प्रदान कर रहा है। यह समूह पुरा, शैल और पर्यावरण चुंबकत्व के क्षेत्र में अच्छी संख्या में शोधपत्र प्रकाशित करने में सबसे आगे है।

2) शैलवैज्ञानिक, भूरासायनिक एवं समस्थानिक अध्ययन:

केएसके जीआरएल की शैलवैज्ञानिक प्रयोगशाला चुंबकीय खनिजों के अध्ययन सहित सभी प्रकार की चट्टानों का विस्तृत शैलवैज्ञानिक अध्ययन करने में लगी हुई है, जिससे पुराचुंबकीय अध्ययन में मदद मिलती है। शैलवैज्ञानिक प्रयोगशाला में शैलखंड कटार्इ मशीन और शैलवैज्ञानिक सूक्ष्मदर्शी उपलब्ध हैं। वर्तमान में शैलवैज्ञानिक प्रयोगशाला में उन्नत उपकरण शामिल हैं जैसे: (क) ब्यूहलर मेटा-सर्व 3000 श्रेणी अधिकांश सूक्ष्म संरचनात्मक विश्लेषण अनुप्रयोगों के लिए प्रदर्शन, किफायत और विश्वसनीयता का एक अनूठा संयोजन प्रदान करती है। यह हाथों से ग्राइंडिंग और पॉलिशिंग के लिए बनाया गया है, जिसके साथ अर्ध-स्वचालित प्रचालन के लिए सदिश LC पॉवर हेड लगा हुआ है। (ख) ब्यूहलर पेट्रो-थिन पुनर्-खंडित एवं ग्राइंडिंग करने   की एकल प्रणाली है जो एक सटीक, आसानी से उपयोग होने वाला उपकरण है, जो चट्टानों और खनिजों जैसे विभिन्न प्रकार के भूवैज्ञानिक नमूनों के पतले खंड बनाने के लिए है (ग) ओलिंपस BX 51 खनिज गठन की शैलवैज्ञानिक जानकारी और पहचान हेतु शैलवैज्ञानिक संलग्नक है जो त्रिगुणी ध्रुवीयता सूक्ष्मदर्शी में इसे 40X तक बढ़ा सकता है। JNOPTIK जर्मनी के आधार पर, उच्च गुणवत्ता 1/2 ”3.15 मेगा पिक्सेल रंग CMOS कैमरा प्रत्यक्ष छायांकन के साथ खनिजों का चित्र खींच सकता है।

3) पर्पटीय विरूपण अध्ययन:

केएसके जीआरएल में जीपीएस स्कंध उत्तर भारत में कई क्षेत्रों के पर्पटीय विरूपण अध्ययन में मुख्यालय में मुख्य समूह के साथ समन्वय करता है। निरंतर जीपीएस प्रेक्षण पर्पटीय विरूपण अध्ययन के लिए साइट की सटीक स्थिति बता सकता है। नियमित अंतराल पर अभियान प्रेक्षणों द्वारा संवर्धित करने पर ये प्रेक्षण अच्छी समाविष्टि प्रदान कर सकते हैं। प्रतिबल उत्पत्ति के अन्वीक्षण से भूकंपीय प्रवण क्षेत्रों का सीमांकन किया जा सकता है और सक्रिय भ्रंश क्षेत्र परिभाषित किए जा सकते हैं। प्राकृतिक खतरों की पूर्व-चेतावनी विरूपण विश्लेषण का अंतिम उद्देश्य है।