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डीईसीए

रेडियो और ऑप्टिकल तकनीकों के उपयोग से वायुमंडल-आयनमंडल प्रणाली का गतिकीय और विद्युतगतिकीय युग्मन (डीईसीए)

मुख्य संयोजक: एस. श्रीपति और  सदस्य

परियोजना विवरण:
विषुवतीय और निम्न अक्षांशों पर पृथ्वी के भूचुंबकीय क्षेत्रों की अनूठी ज्यामिति विषुवतीय इलेक्ट्रोजेट (ईईजे) या काउंटर इलेक्ट्रोजेट (सीईजे), विषुवतीय आयनीकरण विसंगति (ईआईए) और विषुवतीय स्प्रेड-एफ (ईएसएफ) अनियमितताओं के बड़े आयाम पर विकास के लिए उत्तरदायी है। यद्यपि पिछले कुछ दशकों में उनकी अवधारणा को समझने में महत्वपूर्ण प्रगति हुई है, खासकर छोटे आयाम पर जैसे कि दिन-प्रतिदिन की परिवर्तनशीलता जिसके लिए आगे की जांच की आवश्यकता है।
निम्न अक्षांशों पर, सूर्यातप, संवहन, पर्वतमाला, आदि के कारण पृथ्वी की सतह का विभेदक तापन, व्यापक स्पेक्ट्रम पर वायुमंडलीय तरंगें (जैसे, ज्वार, गुरुत्वाकर्षण तरंगें, ग्रहीय तरंगें) उत्पन्न करता है। ऊपर की ओर फैलने वाली कुछ तरंगें या तो अवशोषित हो जाती हैं या मध्‍यमंडल-निम्‍न तापमंडल (एमएलटी) क्षेत्र में फैल जाती हैं और उच्च-क्रम तरंगों को आवेशित करती हैं। इन प्राथमिक और उच्चतर क्रम तरंगों का एक भाग तापमंडल-आयनमंडल क्षेत्र में प्रवेश करता है और वहां पृष्ठभूमि तटस्थ और प्‍लाज्‍़मा मापदंडों को बाधित करता है। दूसरी ओर, अर्ध-वार्षिक दोलन (एसएओ), अर्ध-द्विवार्षिक दोलन (क्यूबीओ), और अचानक समताप मंडल वार्मिंग (एसएसडबल्यू) जैसी घटनाएँ पृष्ठभूमि वायुमंडल को नियंत्रित करती हैं और वायुमंडलीय तरंगों के ऊपर की ओर फैलने की ऊर्जा और गति को नियंत्रित करती हैं। इसके अलावा, बिजली भी गुरुत्वाकर्षण तरंगों और विद्युत चुम्बकीय आवेगों को ट्रिगर कर सकती है जो अक्सर एमएलटी क्षेत्र में फैलती हैं और स्प्राइट्स और विशाल जेट उत्‍पन्‍न करती हैं।

नीचे से आने वाले दबाव के अलावा, उच्च अक्षांशों पर सौरपवन-चुंबकमंडल-आयनमंडल युग्मन भी अंतरिक्ष मौसम की घटनाओं के दौरान विषुवतीय आयनमंडल-तापमंडल प्रणाली में बाधा उत्पन्न कर सकता है। वे सकारात्मक/नकारात्मक आयनमंडलीय तूफानों का कारण बन सकते हैं, ईएसएफ की शुरुआत को प्रभावित कर सकते हैं और रेडियो संचार को काफी हद तक प्रभावित कर सकते हैं। साथ ही, पिछले अध्ययनों से पता चला है कि अंतरिक्ष मौसम की विक्षोभ स्काईवेव संकेतों के उपयोग योग्य स्पेक्ट्रम और कवरेज को 50% से अधिक तक कम कर सकती है। जब स्थलीय संचार नेटवर्क बाधित होते हैं तब प्राकृतिक आपदाओं के दौरान स्काईवेव संचार महत्वपूर्ण हो जाता है। इसलिए, हमें भविष्यवाणी क्षमताओं को प्राप्त करने के लिए निम्न-अक्षांश और विषुवतीय आयनमंडल की जटिल गतिशीलता और विद्युतगतिकी को समझने के लिए ऊपर और नीचे दोनों से आने वाले दबाव को समझने की आवश्यकता है।

whole atmosphere-ionosphere coupling processes

नए विज्ञान कार्यक्रम, डीईसीए को स्थलीय और अंतरिक्ष मौसम की घटनाओं के तहत पूरे वायुमंडल-आयनमंडल युग्मन प्रक्रियाओं को संबोधित करने के लिए सावधानीपूर्वक तैयार किया गया है। आईआईजी के पास भारत भर में कई स्थानों पर तैनात रेडियो और ऑप्टिकल उपकरणों का एक सुदृढ़ सतह-आधारित प्रेक्षण नेटवर्क है। इस परियोजना का उद्देश्य एयरग्लो, आयनोसॉन्ड्स, सतह रडार, वीएलएफ रिसीवर, आईसीएम और जीपीएस रिसीवर के उपयोग से मध्य और ऊपरी वायुमंडलीय संरचना और गतिशीलता में परिवर्तनशीलता को समझना है। डीईसीए कार्यक्रम के तहत, डेटा माइनिंग, उन्नत प्रतिरूप के साथ-साथ डेटा आत्मसात तकनीकों के लिए न्यूरल नेटवर्क और मशीन लर्निंग एल्गोरिदम का उपयोग करने की परिकल्पना की गई है ताकि मौजूदा प्रेक्षण डेटासेट के उपयोग से हमारे डेटा-आधारित विज्ञान को आगे बढ़ाया जा सके। हम आयनोसॉन्ड प्रेक्षण के उपयोग से आयनमंडलीय मापदंडों को निकालने के लिए एल्गोरिदम विकसित करने की भी योजना बना रहे हैं ताकि आयनमंडल की स्थिति के बारे में वास्तविक समय की जानकारी प्राप्त की जा सके। प्रस्तावित अध्ययनों में नेविगेशन और रेडियो तरंग प्रसार विधियों के लिए संभावित अनुप्रयोग हैं। रेडियो तरंग जांच तकनीक के उपयोग से किए गए अध्ययन से आयनमंडलीय प्‍लाज्‍़मा अनियमितताओं और आयनमंडलीय झिलमिलाहटों, उनके विकास और सौर प्रवाह निर्भरता के आयाम-आकार पर निर्भर विशेषताओं की समझ में भी वृद्धि होती है।

Ionospheric Experimental Network operated by IIG

चुंबकीय भूमध्य रेखा पर वीएचएफ रडार: आयनमंडल के विषुवतीय ई और एफ क्षेत्रों में आयनमंडलीय प्‍लाज्‍़मा अनियमितताओं और प्‍लाज्‍़मा स्रोत की जांच करने के लिए तिरुनेलवेली में नया सुसंगत वीएचएफ रडार स्थापित करने का प्रस्ताव है। यह रडार विषुवतीय विद्युत क्षेत्रों और विषुवतीय प्‍लाज्‍़मा बुलबुले (ईपीबी) की सीडिंग की जांच करने के लिए बहुत उपयोगी उपकरण है। इस रडार का महत्व यह है कि आयनमंडलीय क्षेत्रों और प्‍लाज्‍़मा स्रोत की जांच करने के लिए देशांतरों में चुंबकीय भूमध्य रेखा पर ऐसे बहुत से सुसंगत रडार उपलब्ध नहीं हैं।
शोध का महत्व: नीचे और ऊपर से आने वाले दबाव का रेडियो तरंग संचार और जीपीएस नेविगेशन पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ेगा। चूँकि हम अपनी दैनिक गतिविधियों के लिए उपग्रह संचार पर निर्भर हैं, इसलिए अंतरिक्ष मौसम और जीपीएस नेविगेशन और रेडियो तरंग संचार पर इसके प्रभाव की महत्वपूर्ण भूमिका है। माना जाता है कि जीपीएस रेंज त्रुटियों का परिचालन पूर्वानुमान, ईपीबी/प्रस्‍फुरण घटना की संभावना ऊपर और नीचे से आने वाले दबाव से प्रभावित होती है। इसलिए, इस कार्यक्रम/परियोजना के तहत किए गए अध्ययनों का नेविगेशन और रेडियो तरंग प्रसार अनुप्रयोगों पर प्रभाव पड़ेगा।
 मुख्य संयोजक: एस. श्रीपति
संयोजक: एस. तुलसीराम
सदस्य: एस श्रीपति (एसएस), एस गुरुबरन (एसजी), एस तुलसीराम (एसटी), राजेश सिंह (आरएस), आर घोडपागे (आरजी), नवीन परिहार (एनपी), एस सतीश कुमार (एसके), जयश्री (जेबी), शांतनु पांडे (एसपी), सुकांत साव (साउ), इस कार्यक्रम से जुड़े छात्र/ शोध सहयोगी
तकनीकी टीम: पीटी पाटिल, सेल्वराज, एन वेंकटेश, प्रभाकर तिवारी, सर्वेश चंद्र